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लेखनी कहानी -05-Jan-2023 (7)अपनी पगड़ी, अपने हाथ ( मुहावरों की दुनिया )



शीर्षक = अपनी पगड़ी, अपने हाथ



मुर्गे की बाँग और चिड़ियों की चेह चाहट से राधिका की आँख खुल जाती है, बाहर खिड़की से देखने पर मौसम बेहद सुहाना लग रहा था, वो बिस्तर से उठ कर खिड़की के पास आ कर खड़ी हो जाती है, और कुछ सोच ने लग जाती है


मानो उसे आशीष की याद आ रही हो, इसलिए वो अपना मोबाइल निकाल कर उसमे आशीष का नंबर डायल करने लगती है, लेकिन तब ही उसे आभास होता है, कि अभी तो वो सो रहा होगा, इसलिए वो फ़ोन को एक रिंग जाते ही काट देती है

लेकिन ये क्या, उसका फ़ोन बज उठा और उस पर उसके पति आशीष का नाम लिखा हुआ था, राधिका चहरे पर मुस्कान सजा कर उस फ़ोन को उठाती और कहती " माफ करना आशीष, अचानक से लग गया था, क्या बात तुम जाग रहे थे? "

"मैं आज़ जल्दी उठ गया था, रात भी नींद नही आ रही थी और सुबह आँख भी जल्दी खुल गयी  " आशीष ने कहा

"तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना,ठीक से खा पी तो रहे हो ना " राधिका ने पूछा


"तुम लोगो के बिना भला कैसे ठीक रह सकता हूँ, तुम दोनों तो वहाँ जाकर भूल ही गए हो " आशीष ने कहा


"तो तुम भी आ जाओ, कुछ दिन कि छुट्टी ले लो, अस्पताल में और भी डॉक्टर है, खाली तुम ही तो नहीं हो, देखो!गांव कितना खूबसूरत है, यहाँ का माहौल भी और मौसम भी कितना प्यारा है, इतने प्यारे मौसम में मेरी ज़ुबान पर एक गाना आ रहा है " भीगा भीगा है समा, ऐसे में जाने तू कहा,, मेरा दिल ये पुकारे आजा "

तुम भी यहाँ होते तो कितना अच्छा होता " राधिका ने कहा


"वाह, वाह आप तो बेहद प्यारा गाना गा लेती है, क्या सच में,? गांव का मौसम सुहाना हो रहा है, क्या अब भी वहाँ पर चिड़ियों के चेहचाहने की आवाज़े आती है, क्या अब भी वो पहले वाला ही गांव है? जैसा पहले हुआ करता था " आशीष ने पूछा


"मुझे नहीं मालूम की आप कोनसे गांव की बात कर रहे है, मेरे लिए तो ये परिवेश नया है, जो की मुझे बहुत प्यारा लग रहा है, आसमान में बादल, ताज़ा हवा, कोयल की कूँ कूँ सब कुछ मन को भाने वाला है, आप भी होते तो यहाँ रहना और अच्छा होता, लेकिन आप को काम से ही फुरसत नहीं, अच्छा छोड़िये ये बताइये उधर सब ठीक है, अच्छे से खा पी तो रहे है" राधिका ने कहा

"हाँ, इधर सब बढ़या है, चलो अच्छा मैं जॉगिंग पर जा रहा हूँ, अब ज़ब उठ ही गया हूँ, बाद को कॉल करूंगा और माँ को मेरी तरफ से प्यार देना और पापा का भी हाल चाल पूछ लेना मेरी तरफ से " आशीष ने कहा


"ठीक है, पूछ लूंगी,," ये कह कर राधिका फ़ोन रख देती है, तब ही उसकी नज़र मानव पर पडती है जो की उठ चूका था, और अपनी आँखे मसल रहा था

"उठ गया मेरा राजा बेटा, चलो अब जल्दी से हाथ मुँह धोकर नहा लो फिर बाहर चलते है, बाहर चल कर दादा दादी से मिलकर उनके साथ नाश्ता करते है  " राधिका ने कहा


"मम्मी, मैं तो दादा के पास सोया था, लेकिन यहाँ कैसे आया " मानव ने पूछा सूखे से मुँह से


राधिका ये सुन थोड़ा मुस्कुराते हुए बोली " बेटा ज़ब आप सो गए थे, तब आपको मैं यहाँ ले आयी थी, ताकि दादा दादी को आपकी वजह से कोई परेशानी ना हो "

"ओह,, अब समझ आया," मानव ने कहा और अपने बिस्तर से नीचे उतर जाता है


थोड़ी देर बाद वो दोनों नहा धोकर, मंदिर में पूजा करके बाहर आँगन में बैठ कर नाश्ता करते है, मानव को आज़ फिर गांव घूमना था, आज़ उसे अपने दादा के खेत पर जाना था अपने दादा के साथ

दीन दयाल जी भी उसे अपने खेत दिखाना चाहते थे, इसलिए नाश्ता पानी करके जानवरों को चारा डाल कर वो मानव के साथ अपने खेत की और चल देते है


खेत पर पहुंच कर लेहलाहती फसल को देख मानव को बेहद अच्छा लगता है,बहुत ही मनमोहक हवा चल रही थी, थोड़ी गर्म थी लेकिन अच्छी लग रही थी, वही दूसरी तरफ दुसरे खेत में बोरवेल चल रहा था और उससे निकलते पानी में गांव के बच्चें नहा रहे थे

मानव ये सब देख ही रहा था, कि अचानक उसके दादा ने वहाँ काम कर रहे एक आदमी को आवाज़ दी और बोले " अरे  हरिया! आज़ बड़े दिनों बाद खेत पर दिखाई दिया, सब कुशल मंगल तो है "

जी,, जी दीनू भैया ( दीन दयाल जी को गांव वाले दीनू भैया के नाम से पुकारते है )ईश्वर कि किरपा से सब कुशल मंगल है, वो शहर गया था, बिटिया के ससुराल उससे मिलने बहुत दिनों से खबर नहीं मिली थी इसलिए, वहाँ जाकर बिटिया ने रोक लिया, मैंने तो उसे बेहद समझाया कि बिटिया की ससुराल का पानी भी नहीं पीना चाहिए और तू मुझे रुकने का कह रही है, लेकिन उसने कहा " कि ये सब बाते पुरानी है, मैं नहीं मानती और ज़िद्द करने लगी, जिसके चलते मुझे रुकना पड़ा, वहाँ रुक कर मैंने पाया कि मेरी बिटिया अपने ससुराल में खुश है, उसने बहुत जल्द ही सबके दिल में अपनी जगह बना ली है "


"अच्छा किया रुक गए, इसी बहाने तुम्हे पता तो चल गया कि तुम्हारी बेटी खुश है अपने घर में, वरना तो बताती कहा है बेटियां अगर उन्हें कोई परेशानी होती भी है तो, वो यही सोचती है कि कही उनकी वजह से उनके माता पिता को तकलीफ ना हो " दीन दयाल जी ने कहा

"ठीक कहा दीनू भैया, ये सब आप कि बदौलत हो पाया है, " हरिया ने कहा

दीन दयाल जी कुछ कहते उससे पहले ही वहाँ एक अन्य शख्स की आमद होती है, और वो उन दोनों को देख कहता है " राम राम,, दीनू भैया क्या हाल है? अरे हरिया! कहा गायब थे, बहुत दिन बाद दिखाई दिए "

दीन दयाल जी ने तो उस शख्स के पूछे प्रश्न का जवाब दे दिया किन्तु हरिया ने ना तो उसके प्रश्न का जवाब ही दिया और ना ही और कुछ बोला और दीन दयाल जी से वहाँ से जाने की अनुमति लेकर चला गया और जाते हुए बोला " दीनू भैया घर आना, आपकी भाभी और बच्चें आपको याद कर रहे थे "


"ठीक है, हरिया समय मिलेगा तो अवश्य आऊंगा " दीन दयाल जी ने कहा

वो तीसरा शख्स जो दीन दयाल जी से बाते करके वहाँ से चला जाता है, लेकिन पास खड़े मानव के दिमाग़ में एक सवाल खड़ा कर गया और वो ये था की हरिया चाचा ने उसके दादा से तो काफ़ी बाते करी लेकिन उस आदमी के प्रश्न का भी उत्तर नहीं दिया और ना ही राम राम का जवाब दिया और वहाँ से चले गए


बच्चें हमेशा अपने मन में चल रही व्यथा को अकसर अपने चाहने वालों के साथ सांझा अवश्य करते है, ताकि उनके मन की व्यथा या फिर जिज्ञासा किसी चीज को जानने की पूरी हो सके, इसी के चलते मानव ने भी अपने दादा से प्रश्न कर ही लिया, जो भी कुछ उसने देखा


दीन दयाल जी उसे लेकर एक पेड़ के नीचे बैठ गए और बोले " बेटा हरिया चाचा का उस आदमी के प्रति इस तरह का रावय्या रखने के पीछे एक वजह है, बेटा कुछ महीने पहले, तुम्हारे हरिया चाचा की बडी बेटी की शादी तय हुयी थी, जिसके चलते उन्हें अपनी बेटी का दहेज़ और बारतियों के स्वागत के लिए कुछ पैसों की ज़रूरत थी, जो पैसे उनके पास थे वो इतने नहीं थे, की उसमे दहेज़ और भोज दोनों हो सके


इसलिए उन्होंने मदद के लिए पहले ईश्वर को बाद में मुझे पुकारा, मेरे पास भी जो कुछ था वो उन्हें दे दिया लेकिन कुछ पैसे और कम पड़ रहे थे जिसके चलते उन्होंने उस आदमी से पैसे लिए जिससे जरूरत पड़ने पर सूत पर सारा गांव लेता है,


बिटिया की शादी तो जैसे तैसे हो गयी, एक लाचार और मजबूर बाप अपनी बेटी का घर बसाने के लिए जो जो कोशिश कर सकता था, उसने वो की बाकी उसका नसीब, लेकिन शुक्र है की उसकी बेटी अपने घर में खुश है,


लेकिन उसे अपने घर में ख़ुश देखने के लिए जितना दुख उसके माता पिता को उठाना पड़ा उसका अंदाजा भी उसे नहीं होगा, वो आदमी जो यहाँ आया था  उसी से हरिया ने पैसे उधार लिए थे, लेकिन इन महीनों में ज़ब तक उसने उसका एक एक रुपया नहीं उतार दिया मेहनत करके, तब तक उस आदमी ने उसे जलील करने का कोई मौका नहीं छोड़ा

एक दिन तो उसके घर पर हंगामा ही कर आया, यहां तक की चंद पैसे ना मिलने पर वो उन सब को घर से निकालने की बात कर रहा था


लेकिन जैसे तैसे करके ईश्वर की किरपा से उसने उसका कर्जा चूका दिया, उसने कर्जा तो चूका दिया लेकिन अब वो उसकी इज़्ज़त नहीं करता है और यही वजह थी की उसने आज़ उसके सवाल का जवाब देना भी गंवारा नहीं समझा


बेटा इंसान की इज़्ज़त उसका सबसे बड़ा धन है, जिस इंसान की कोई इज़्ज़त नहीं सामने वाले की नज़र में फिर चाहे वो पूरी दुनिया की धन दौलत का मालिक ही क्यूँ ना बन जाए वो बिलकुल दो कोड़ी के समान है


बेटा इसलिए बड़े बुजुर्गो ने कहा है, अपनी पगड़ी अपने हाथ यानी की अपनी इज़्ज़त अपने हाथ, चाहो तो इसे अपने व्यवहार और आचरण से और बड़ा लो नहीं तो उसी से दो कोड़ी में बेच दो, तुम्हारे हाथ में है


यही वजह थी की वो खेतों में काम करने वाला एक छोटा सा हरिया उसकी नज़र में गांव की आधे से ज्यादा ज़मीनो के मालिक की कोई इज़्ज़त नहीं, क्यूंकि उसने अपनी इज़्ज़त खुद गवाही थी, उसे सबके सामने चंद पैसों के लिए हर दिन जलील करके "


मानव जो की ध्यान से अपने दादा की बात सुन रहा था और बोला " मुझे ये तो नहीं पता की हरिया चाचा ने उनसे बात करके अच्छा किया या बुरा, लेकिन आपने जो कुछ मुझे बताया उससे यही जान पड़ता है, कि इंसान अपनी इज़्ज़त खुद कराता है दूसरों से, इसे जबरदस्ती नहीं कराया जा सकता है, जहाँ तक मुझे लगता है ये मुहावरा उस पर्चे में भी लिखा हुआ है, आज़ एक और मुहावरें पर कहानी बना लूँगा मुझे उम्मीद है, छुट्टियां ख़त्म होने से पहले आपकी मदद से सारी कहानियाँ लिख लूँगा, है ना दादा जी "


"जी बिलकुल छोटे साहब, चलो अब थोड़ा खेत में टहल कर आते है, फिर घर चलेंगे " दीन दयाल जी ने कहा


मुहावरों कि दुनिया हेतु 

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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Mar-2023 07:33 AM

बहुत बढ़िआ

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Sushi saxena

17-Jan-2023 06:28 PM

बहुत ही सुन्दर

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